मेरी प्रिय अर्धांगिनी

 मेरी प्रिय अर्धांगिनी
अर्धांगिनी की जली कटी भी बहुत प्रिय लगती है
जब वह तवे या श्रीमुख से गरमा गरम निकालती है।
अर्धांगिनी घर से आने जाने के लिये चाहे लाख रोके टोके
अर्धांगिनी के मायके जाते ही याद आ जाते हैं
आटे दाल के भाव किधर हैं रूमाल मोजे,
मोबाईल पर पूछने पर सालियाँ और सलहजें खूब हंसती हैं।
रिमोट मेरे हाथ में देख पड़ोसी समझते हैं
कि टीवी मेरी उंगलियों के इशारों पर चलती है
असल में कब कौन सा चैनल बदलेगा या चलेगा
बगल में बैठकर अर्धांगिनी ही निर्देशित करती रहती है।
महीने की तारीख पहली हो या आखिरी
चेकबुक और एटीएम अर्धांगिनी स्वयं रखती है
मुझे ऑफलाईन जेब खर्च पकड़ा कर
सारे ऑनलाईन ट्रांजेक्शन खुद ही करती है।
खाने में आज क्या बनाना है पूछ पूछ कर
अर्धांगिनी रोज तंग करती है हाँ यह बात अलग है कि
बनता वही है जिसमें श्रीमती जी की सुविधा और पसन्द रहती है।
मेरे सिर के उड़ चुके बालों का
अर्धांगिनी तनिक भी रंज नहीं करती है क्योंकि
जब जब वे अपने केश सवारती हैं
तो उनकी कंघी भी टूटे बालों से भरी रहती है।
अर्धांगिनी ने पूछा कि आपको मुझमें और
आपकी कविता में कौन अधिक अच्छी लगती है
मैने कहा आप, जो कि मेरी अधूरी कविताओं के ढेर को
मेरे बच्चों की तरह सहेज कर रखती है।
अर्धांगिनी ने पूछा कि ए जी जरा बताओ
कितना प्यार तुम मुझसे करते हो मैने कहा कि
बस जरा सी खरोंच आ जाये आपको तो चोट मेरे दिल को लगती है।
मेरी प्रिय अर्धांगिनी
मेरी प्रिय अर्धांगिनी

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3 Comments


  1. जब कभी मौसम में खुशबू बिखर जाए,
    जब कभी चांदनी रात निखर जाए,
    जब बेवजह ये धड़कन मचल जाए,
    तो समझ लीजियेगा हमने आपको याद किया…

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  2. मोहब्बत कुछ नही है वफ़ा के सिवा
    ज़िंदगी कुछ नही है सज़ा के सिवा
    उनके पास हमारे सिवा सब कुछ है
    बस हमारे पास कुछ नही है उनके सिवा…

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