मेरी
आंखें तुम्हे ढूंढती हैं हर जगह
ना
ये गली तुम्हारी, ना
ये शहर तुम्हारा,
फिर
भी लगता है,
तुम
यहीं कहीं मिल जाओगे,
मेरी
आंखों की
उदासियां
में रौनक भर जाओगे,
जैसे
सूरज चला आता है
इन्द्रधनुष
लिए, बारिशों
के बाद।
मन
इस बिछोह से सहम सा गया है,
लगता
है शायद,
तुम्हें
फिर से ना देख भी पाऊं,
फिर
भी इक आस है,
तुम
इस आईने से निकल आओगे,
दोनो
हाथों से मेरे गालों को छू,
अपने
हकीकत होने का अहसास कराओगे।
तुम्हारे
आने का इंतजार रहता है,
तुम
तक जाने को भी मन बेकरार रहता,
और
मैं आंखे बंद कर,
मन
ही मन तुम्हारा नाम लेकर
तुम्हारे
रुबरू होने का अहसास कर
दिल
की सब बातें कह देती,
मुझे
पता है तुम पढ़ रहे हो
हवाओं
संग आती मेरी चिट्ठियां..
-डॉ
नीरू जैन
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