आपको पता है कौन हो आप

आपको पता है कौन हो आप

मेरे जिंदगी की अनछुई परछाई हो आप

समझता मैं भी अजनबी था आपको,

मिला मुझे खुद का पता जब न था,

मिली जब पनाह आपके प्यार की,

छोड़ हक़ीक़त सपनों में खो गया,

मिला आपका साथ तो अपनों का हो गया,

बिताये हर एक पल ग़मों से दूर रहा मैं,

रहता जिस गुरुर में था मैं,

उससे दूर रहा मैं,

मुझे नहीं पता क्या सीखा आपने मुझसे,

मगर इस दिल ने सीखा बहुत आपसे,

सपनों की हक़ीक़त,

हक़ीक़त का टूटना,

ज़िन्दगी की सच्चाई,

और दिल का रूठना,

अब इससे ज़्यादा क्या बताये ये दिल

प्यार और इबादत की तालीम हो आप

आज जाना मेरी अधूरी जिंदगी में मीठा शवाब हो आप,

इस दिल की नहीं आप,

ऊपर वाले की प्यारी रचना हो आप,

ये तारीफ नहीं जुबां की,

बस वाक्या है मेरे दिल का,

रहे मेरे पास शायद वजह यही है मेरे सिर झुकाने की,

रहे हमेशा मेरी ज़रूरत नहीं मुझे ये बताने की,

यूं निगाहों से नहीं चाहा कभी आपको,

ये दिल आप पर निसार था,

ज़िन्दगी पर किसी का हक ये गवारा मुझे था,

पर पाबंदिया उसूलों से अच्छी होंगी,

ये वक़्त से ज़्यादा आपने बताया था,

रहे उस सोने की तरह जो ढल जाता सांचे में,

रहूँ मैं उस साँचे जैसा ढले जिसकी आस में,

क्योंकि आप तो नहीं मगर ज़िन्दगी की अंतिम सांस हो आप,

आज हक़ीक़त को जाना,

ज़िन्दगी के हर किनारे का साथ हो आप,

ये शब्द नहीं जज़्बात हैं मेरे,

वरना दिल- फ़क़ीर क्या जाने,

मेरी मुस्कान का राज़ हो आप।




Post a Comment

0 Comments